कशमकश, (एक कहानी) इधर उम्र की डायरी में 31 पन्ने पलट गए ! सब कुछ इतनी तेजी से घट रहा था, कि दीप्ति इस रफ्तार मे कहीं पीछे छूट रही थी.

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बीटेक ,MBA और उसके बाद 6 साल की मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर की नौकरी हर वर्ष बढ़ता पैकेज ,कब 48 लाख पहुंच गया, दीप्ति को पता ही नहीं चला ।
इधर उम्र की डायरी में 31 पन्ने पलट गए !सब कुछ इतनी तेजी से घट रहा था, कि दीप्ति इस रफ्तार मे कहीं पीछे छूट रही थी. यही सब सोचते हुए लंच के बाद अपनी कुर्सी में बैठे -बैठे दीप्ति की आंँखें बंद हो गई और वह दूर बचपन में खेले जा रहे अपने खेल ” गुड्डे गुड़िया की शादी और बाराती “” बारिश के वह दिन याद कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी कि तभी टेबल में हुई खट की आवाज से उसने आंँखें खोली, तो सामने दीक्षा खड़ी थी और उसके हाथ में शादी का कार्ड था

कह रही थी दी ….25 मई को मेरी शादी है और आपको आना है !दीप्ति ने बड़े कौतूहल से दीक्षा से पूछा ..उसी गुटुर -गुँ से है नां तुम्हारी शादी ??-बहुत प्यारा और हैंडसम है वह ! नहीं दी मैंने उस कबूतर को उड़ा दिया, अपनी जिंदगी से,, मैं राजस्थान के बड़े ठाकुर घराने से आती हूंँ यहांँ अपने मन की कोई गुंजाइश नहीं है ।तुम तो जानती हो रिश्तों में करणी सेना का पहरा है ,हमारे यहां ! कहकर मानो एक लंबी सांँस छोड़ी हो दीक्षा ने ।
तब दीप्ति ने पूछा, अच्छा यह बताओ क्या करते हैं ? दूल्हे राजा ! दीक्षा ने जवाब में कहा परिवार की माइंस हैंं और कुछ बिजनेस ।दीप्ति ने हँसते हुए कहा-
प्रोजेक्ट मुझे vibel नहीं लगता बच्चे ..!
और फिर मानो अपनी गलती सुधारते हुए कहा…सॉरी..!क्या करें यार, हम कॉरर्पोरेट वालों की जुबान रिश्तोंं को भी सिर्फ़ नफे नुकसान की भाषा से पहचानती है! चलो, बधाई मैं जरूर आउंँगी दीक्षा ।

दीक्षा के जाते ही दीप्ति अपनी जिंदगी की गणित में खो गई ,उसे लगने लगा कि जैसे अचानक बंद कमरे में बहुत से सवाल उग आए हैं और दीवार में गुड्डे- गुड़िया की शादी की पिक्चर चलने लगी है… कॉलेज के दिनों की कुछ तस्वीरें और कुछ सहपाठी उसके दिमाग में उभरने लगे ,जिनमें वह अपने लिए प्यार देखने लगी और जिंदगी के प्रस्ताव ,लेकिन उन दिनो पढ़ाई – पढ़ाई उसके बोझ ने जैसे उन कोपलों को कुचल दिया हो. नौकरी ,पैकेज और उसकी गणित ने न जाने कितने खूबसूरत ख्वाबों को आषाढ़ की पहली बारिश की तरह धो दिया हो और अब दीमाग बिल्कुल साफ है ।कोई सवाल बाकी नहीं ,सिर्फ गणित, पैकेज ,vibelty और मुनाफा जैसे ही शब्द जिंदगी बन गए हैं।आंखें फिर बंद हुई माँ के शब्द कानों मे सुनाई देने लगे… दीप्ति तुम्हें हमारे देखे रिश्ते पसंद नहीं आते ,तो तुम खुद देख लो ।कुछ अपने मन की है तो बता ?? हमे कोई एतराज नही है.. बस तुम शादी कर लो !

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दीप्ति चिढ़ कर मां से कहती है .जब उम्र थी पढ़ाई -पढ़ाई और किताबों के बोझ से मैंने दिल के दरवाजे बंद कर दिए ,अब तुम्हारी ये कच – कच ,अब तो दिल का रास्ता दिमाग से आता है. तो ऐसे में मैं प्यार किससे करूँ कैसे करूं ??….इसी उधेड़बुन में आज वह परेशान हो गई और कसमकश जब बड़ने लगी तो उसने एक सप्ताह की छुट्टी लिख कर ,पिंडारी ग्लेशियर ट्रैकिँग में जाने का फैसला कर लिया और अपने घर हल्द्वानी आकर अगले दिन सुबह पिंडारी के लिए निकल पड़ी, बागेश्वर पहुंचकर रूकसाक और खाने का थोड़ा सामान पैक कर अगले दिन सुबह पिंडारी ग्लेशियर को पैदल ट्रैकिंग करने निकल पड़ी ।

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इस बार ट्रैकिंग में जाते हुए वह अपने साथ बहुत से सवाल लेकर चल रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था रुपया पैसा और कामयाबी के बीच खुशियाँ कहाँ छुप गई हैं ??इसी उधेड़बुन में वह आगे बड रही थी कि कपकोट से नीचे हरे खेतो़ में एक महिला काम कर रही थी और 40- 42 साल का उसका पति थरमस में चाय लेकर खेत में आया। पीछे -पीछे सात आठ साल के उसके दो बच्चे भी साथ थे। दोनों पति-पत्नी पेड़ की छांँव में बैठ कर चाय पीने लगे, बातों बातों में बहुत हंँस रहे थे, खुश थे ,बच्चे रास्ते में ही गोल -गोल घूम कर खेल रहे थे …”हरा समंदर गोपी चंदर/ बोल मेरी मछली कितना पानी, कितना पानी ??”मानो इस खेल में बच्चे दीप्ति से सवाल कर रहे होंं- कि तुम्हें तैरने के लिए और कितने पानी की जरूरत है ??इतना तो नहीं– कि तुम डूब ही जाओ..। बच्चो का खेल दीप्ति की बेचैनी बढा़ने लगा. ..

उसने पास जाकर उस महिला से सवाल किया कि “तुम इतना खुश कैसे हो?? तुम्हारे हस्बैंड क्या करते हैं ??महिला ने अचरज से पूछा- भूली एसा पूछ क्यों रही हो..!
नही बस एसे ही तुम्हारे हस्बैंड कमाते कितना हैँ..??पता नही भूली थोडा खेती है ..थोडा गाय भैँस…बाकी मूल नारायण की कृपा है, चल ही जाता है ।..फिर इतना खुश कैसे हो ?अरे भूली खुशी बाजार मे थोडे बिकती है ,जिसके लिए पैसे चाहिए.. पैसे बस पेट के लिए चाहिए वो भर ही रहा है..खुशियाँ
तो कस्तूरी सी हैैंं …अपने ही भीतर छुपी हैैं ,उसे पैसे मे मत तलाशो..नहीं मिलेंगी…!!

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मानो दीप्ति की कसमकश खत्म हो गई हो..कानों मे टकरा रहे बच्चो के शब्द ..बोल मेरी मछली कितना पानी ??कितना पानी ?? अचानक सिहरन पैदा करने लगे और ट्रैकिंग बीच में ही छोड कर दीप्ति ने वापस घर लौटने का फैसला किया अगले दिन वापसी में कसारदेवी से गुजरते हुए साँझ हो रही थी और ढलता हुआ लालिमायुक्त सूरज पूरी घाटी में एक अद्भुत सौंदर्य उत्पन्न कर रहा था !रात होने को थी मानो सूरज कह रहा हो अपनों के बीच अगर अपनेपन से रहना है तो कामयाबी की चमक और दँभ छोड़ कर आना होगा ,छोड़ कर आना होगा …इन्हीं सवालों से उलझते हुए दीप्ति अल्मोड़ा पहुंच गई उसने पुलिस की नो पार्किंग की बजती हुई सीटियों के बीच खीमसिंह की दुकान से दो बाल मिठाई के डिब्बे लिए और घर हल्द्वानी पहुंच कर अपनी ईजा को मिठाई के डिब्बे देते हुए कहा मांँ इस बार ट्रैकिंग पूरी हो गई…!

मेरी कसमकश दूर हो गई ..। लड़का ढूँढने का अधिकार अब दिल का या तुम्हारा.!. मैंने दिल तक जाने के लिए दिमाग का रास्ता बंद कर दिया है अब.।मैने मन की क्यारी से सवालो की कँटीली नागफनी. हटा ली है.।..अब तो मधुमालती का ही फूल लगाना है….. ईजा.

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