उत्तराखंड में क्या ‘आप’ के आने से बहार आएगी ?

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उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी ये घोषणा पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल के करने भर से उत्तराखंड में राजनीतिक चर्चाएं तेज़ होगयी है,सवाल उठ कर ,जवाब मांगने लगे है कि कैसे “आप” के आने से बहार आएगी?
पत्रकारिता करते और चुनाव देखते हुए मेरे तीन दशक का अनुभव कहता है कि अगले डेढ साल उत्तराखंड में राजनीतिक उठक पटक के रहने वाले है।”आप”ने पिछले से पिछले लोक सभा चुनाव में अपनी हैसियत देख ली थी जबकि उस वक्त अरविंद केजरीवाल का जादू चल रहा था,उत्तराखंड में भी जिला शहर में उसके कार्यकर्ता मनोयोग से लगे थे परंतु मोदी जादू से पार नही पा सके।
तब से अब तक टीम केजरीवाल ने यहाँ कुछ खास नही किया और वो अब फिर से क्यों इधर की तरफ रुख मोड़ रही है?यही कारण तलाशे जाने है।पहली खबर ये है कि बीजेपी में जो कांग्रेसी नेता आये और मंत्री विधायक बने वो अपने कार्यकाल में घुटे घुटे से रहे और वो घुटन से मुक्ति चाहते है।

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लिहाजा चुनाव के आसपास बीजेपी से उनका पलायन होने का खतरा है जानकारी के मुताबिक बड़े सपने देखने वाले “आप”के गेम में शामिल है, उनके साथ कुछ मीडिया मुगल भी शामिल बताये जा रहे है। “आप” का गेम पहली नज़र में येही दिखता है कि सत्ता नही भी मिली पर सरकार में “आप”जरूरी है, पर खेला जाना है। पिछला विधानसभा चुनाव मोदी फैक्टर और हरीश रावत सरकार के खिलाफ जनाक्रोश पर लड़ा गया,कांग्रेस से मजबूत बागी बीजेपी को भारी बहुमत पर लेगये, बीजेपी राष्ट्रीय नेतृत्व ने वायदा निभाया बागी कांग्रेस मंत्रियों को अपने सत्ता में मंत्री बनाया लेकिन उनकी आज़ादी को घोंट कर रखा,मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जिन्हें राजनीतिक समीक्षक कमजोर नेता मान रहे थे वो भूल गए थे कि त्रिवेन्द्र रावत संगठन में एक कुशल नेता रहे और अपनी सूझबूझ से उन्होंने बीजेपी को कांग्रेस नही बनने दिया,हरक सिंह रावत,सतपाल महाराज,यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल ,रेखा आर्य,विधायक चैंपियन को ये एहसास आज भी है कि वो कांग्रेस में नही बीजेपी में है,जहां खुद को अनुशासित रखना पड़ता है।येही अनुशासन ही अब इन नेताओं के लिए घुटन पैदा कर रहा है।

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बीजेपी ने भारी बहुमत के बावजूद मन्त्री मंडल का विस्तार नही किया जिसके पीछे मंशा अपने विधायकों को अनुशासन में साधने की थी, त्रिवेन्द्र रावत की सरकार की छवि पहले की तुलना में कम जरूर हुई है परंतु सरकार अभी तक बड़े आरोपो से मुक्त दिखती है। त्रिवेन्द्र रावत की सरकार चलाने की नीति कांग्रेस बागी मन्त्रियों से काम लेने के बजाय नौकरशाही से ज्यादा काम लेने की वजह से थोड़ा खामियाजा भुगत रही है।जिसका फायदा अगले चुनाव में विपक्ष को जरूर मिलने वाला है क्योंकि नौकरशाही ने फील्ड वर्क कम किया मीटिंग ज्यादा की जनता से दूर रही।

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“आप” के आने से बीजेपी को लगता है कांग्रेस के वोटबैंक कमजोर होगा।जबकि हमे लगता है कि बीजेपी को नुकसान होगा क्योंकि दिल्ली पंजाब में बीजेपी को नुकसान हुआ था, उत्तराखंड कांग्रेस में अपना घमासान है हरीश रावत अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे है,जबकि प्रीतम सिंह और इंदिरा ह्रदयेश एक होकर किसी भी सूरत में हरीश रावत को अपना नेता नही मानते, लेकिन कांग्रेस की एक खूबी है कि उसके नेता अपनी अपनी सीटों पर मस्त होजाते है और हाई कमान पर अपने फैसले छोड़ देते है।आगे भी यही होगा और ऐसे ही विधान सभा चुनाव वो लड़ेगी कुछ बीजेपी से भी इनके कैम्प में लोग आजायेंगे। लेकिन “आप ” से उसे कितना नुकसान होगा ये मंथन उसे अब करना होगा क्योंकि बहुत से वामपंथी जोकि अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस के साथ आते थे वो “आप”की टिकट के जुगाड़ में लग जाएंगे। बरहाल अगला विधान सभा चुनाव त्रिकोण लिए हुए होगा ये तो तय है बीजेपी को भारी बहुमत मिलेगा इसमे भी संदेह है कांग्रेस और आप की मेहनत और जनता का नब्ज पकड़ने की योजना सफल हुई तो चुनाव परिणाम चौकाने वाले होंगे।

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