घरेलू हो गया मैं आज़
पर पालतू नहीं …..
ख़ाली बैठा हूँ मैं आज़
पर फ़ालतू नहीं …..
घर बैठने का मक़सद ….
ग़र , सलामती अवाम की है
तो घर बैठूँगा मैं ,
जब हालत ठीक हो जाएँगे …..
अपनों से , तपाक से मिलूँगा मैं ,
पर अभी सब्र करूँगा मैं ,
अपने देश को इस महामारी के
संकट से बचाने के लिए …..
जो कुछ भी मुझसे बनेगा …वो
सब कुछ करूँगा मैं ,
आज़ घर बैठूँगा मैं ….
अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी को निभाऊँगा मैं ….क़रोना को हराऊँगा
मैं ,
शाम को करतल ध्वनि बजा कर ,
इस शृंखला की गूँज को …..
और अधिक बल दूँगा मैं ,
आज़ जनता कर्फ़्यू को पूर्ण समर्पण
दूँगा मैं
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