Harela festival– देवभूमि उत्तराखंड में प्राकृतिक सौंदर्य हरियाली के प्रतीक हरेला त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है खासकर कुमाऊं में हरेला के त्यौहार की तैयारियां विशेष रूप से की जाती है पहाड़ की इस पारंपरिक लोक संस्कृति के त्यौहार को लेकर लोगों में बड़ा ही हर्षोल्लास देखा जाता है क्योंकि हरेला का मतलब है हरियाली, हरेला त्योहार मनाए जाने के बाद से पूरे क्षेत्र में हर जगह हरियाली छाती है बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण होता है यह भी मान्यता है यह हरेले के दिन लगाया गया पेड़ कभी सूखता नहीं है या मरता नहीं है।

कैसे मनाते है हरेला
उत्तराखंड में हरेला पर्व विशेष रुप से मनाया जाता है हर वर्ष कर्क संक्रांति 16 जुलाई को मनाया जाने वाला हरेला त्यौहार से ठीक 9 दिन पूर्व लोग अपने घर के मंदिर में 5 या सात प्रकार के बीज छोटी रिंगाल की टोकरी में मिट्टी डालकर बोते हैं। जिसमें गेहूं, जौ, मक्का,चना आदि प्रकार के 7 बीज बोकर प्रतिदिन उन्हें पानी से सींचा जाता है। और नौवें दिन शाम को पाती की टहनी से इनकी निराई गुड़ाई की जाती है और ठीक दसवें दिन यानी हरेले पर्व पर इसे काटा जाता है।

ऐसे चढ़ाया जाता है हरेला
पहाड़ की पौराणिक मान्यता के अनुसार घर में सुख समृद्धि शांति और अच्छी फसल के लिए मनाया जाने वाला हरेला त्यौहार सुबह-सुबह घर के बुजुर्ग व्यक्तियों द्वारा पूजा पाठ करके सबसे पहले देवी देवताओं और कुल देवताओं को चढ़ाया जाता है जिसके बाद घर के बुजुर्ग सभी छोटे बड़े बच्चों को हरेला चढ़ाते समय यह लोकगीत कहते हैं….
जी रया,जागि रया,
यो दिन बार, भेटने रया,
दुबक जस जड़ हैजो,
पात जस पौल हैजो,
स्यालक जस त्राण हैजो,
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
हरेला त्यार मानते रया,
जी रया जागी रया.
पहाड़ में यह भी मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा और हष्ट पुष्ट होता है तो उस वर्ष की फसल भी उतनी ही बेहतरीन पैदावार देती है। राज्य के कई गांव में हरेले पर्व को सामूहिक रूप से भी स्थानीय ग्राम देवता के मंदिर में मनाया जाता है। यही नहीं राज्य के कई इलाकों में वर्षों से हरेला मेला के आयोजन भी होते हैं।

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