हल्द्वानी- रोबोटिक सर्जरी से 4 मरीजों का मैक्स हॉस्पिटल में ऐसे हुआ इलाज

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  • हल्द्वानी के चार मरीजों का मैक्स अस्पताल वैशाली में हुआ सफल इलाज, की गई रोबोटिक सर्जरी

हल्द्वानी, : थोरैसिक और फेफड़ों से जुड़ी अलग-अलग बीमारियों के उपलब्ध इलाज और रोबोटिक लंग्स सर्जरी जैसी अहम जानकारियों को लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से मैक्स अस्पताल वैशाली ने आज यहां एक जनजागरूकता सत्र आयोजित किया. मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल वैशाली पश्चिमी यूपी और दिल्ली-एनसीआर का एक लीडिंग अस्पताल है.

मैक्स अस्पताल वैशाली में थोरासिक विभाग एंड रोबोटिक सर्जरी के डायरेक्टर डॉक्टर प्रमोज जिंदल ने इस कार्यक्रम में मौजूद रहे. उनके साथ हल्द्वानी के वो चार मरीज भी रहे जिनका मैक्स वैशाली में इलाज किया गया. 32 वर्षीय ललित मोहन, 33 वर्षीय अजय प्रताप, 41 वर्षीय छतरपाल और 62 वर्षीय दर्शन सिंह उपस्थित रहे.

ललित मोहन आर्य के केस पर जानकारी देते हुए डॉक्टर प्रमोज जिंदल ने बताया, ‘’ ललित मोहन आर्य पिछले 8 महीनों से हमारे सामने बार-बार खांसी में खून आने की शिकायत (हीमोप्टाइसिस) लेकर आ रहे थे. ज्यादा खून निकलने के डर से वह शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से पूरी तरह से परेशान थे. उनके पास सीटी स्कैन भी था जिसमें पता चला कि उनके फेफड़ों के ऊपरी हिस्से में एक कैविटी थी जिसमें एक फंगल बॉल (एस्पेरगिलोमा) थी. इसके अलावा, हमने उनकी मेडिकल हिस्ट्री की जांच की, जिसमें 13 साल पहले पल्मोनरी टीबी होने की बात पता चली. इस तरह की हालत के लिए कोई मेडिकेशन वाला इलाज उपलब्ध नहीं था, सिर्फ सर्जरी ही इसका सही विकल्प था. मरीज के फेफड़े छाती की परतों से चिपक गए थे, जिससे सर्जरी करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया था. हमने फेफड़ों के रोग ग्रस्त हिस्से को पूरी तरह से हटाने के लिए एक रोबोटिक प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और इस सर्जरी के बाद मरीज पूरी तरह ठीक हो गया.’’

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ललित मोहन के अलावा डॉक्टर जिंदल ने 41 वर्षीय छतरपाल के बारे में बताया. छत्रपाल को एमपायमा था, जिसमें मवाद की एक मोटी परत फेफड़ों को ढक लेती है. डॉक्टरों की टीम ने शुरू में मवाद निकालने के लिए उसकी छाती में एक ट्यूब लगाने का फैसला किया, लेकिन उसे पूरी तरह से निकालना संभव नहीं था. फिर ‘VATS (वीडियो असिस्टेड एंडोस्कोपिक सर्जरी) डिसोर्टिकेशन’ किया गया. सर्जरी के बाद मरीज ने तेजी से रिकवरी की और अब सामान्य जीवन जी रहे हैं.’’

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तीसरा केस था 62 वर्षीय दर्शन सिंह का. इनके बारे में डॉक्टर जिंदल ने बताया. ‘’दर्शन सिंह को इंट्राथोरेसिक के साथ एक बड़ा गाइटर था जिसके चलते उनकी स्थिति गंभीर हो गई थी. इसे ठीक करने करने के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ती है. लिहाजा, यही किया गया. सर्जिकल टीम स्टर्नेटोमी (ओपन सर्जरी) के बजाय गर्दन के माध्यम से मास को हटाने में सक्षम थी. वॉयस बॉक्स के लिए मरीज की नसों को संरक्षित किया गया था जिससे वह अपनी आवाज को बरकरार रख सके और सर्जरी के बाद वह ट्यूमर से पूरी तरह से ठीक हो गए.’’

चौथा केस 33 वर्षीय अजय प्रताप का था. पिछले साल अप्रैल में चाकू के वार से वो घायल हुए थे. इसमें उनके सीने के दाहिने साइड आर्टरी में चाकू से घाव हुआ था. डॉक्टर प्रमोज जिंदल से फोन पर परामर्श लेने के बाद अजय प्रताप को मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल वैशाली में भर्ती कराया गया. यहां उनकी मिनिमली इनवेसिव थोरैसिक सर्जरी की गई और जहां से खून बह रहा था उस एरिया को कंट्रोल किया गया. पहले ही उनका उस वक्त तक 2 लीटर से ज्यादा खून बह चुका था. सर्जरी के 2 दिन बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया और उन्होंने धीरे-धीरे रिकवरी की. सर्जरी के एक साल बाद वो सामान्य जिंदगी जी रहे हैं.

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इन चार सक्सेस स्टोरी को शेयर करते हुए डॉक्टर प्रमोज जिंदल ने मेडिकल क्षेत्र में हुई तरक्की पर भी अपनी बात रखी. उन्होंने बताया, ‘’पिछले कुछ वर्षों थोरेसिक सर्जरी में रोबोटिक तकनीकें काफी बढ़ी हैं. चेस्ट और पल्मोनरी सिस्टम में समस्या वाले मरीजों के लिए इंट्राऑपरेटिव और पोस्टऑपरेटिव बेहतर रिजल्ट आए हैं. पहले जो ओपन सर्जरी की जाती थीं, उनकी तुलना में थोरैसिक रोबोटिक सर्जरी मुश्किल से मुश्किल केस में भी मरीजों को सुरक्षित और बेहतर परिणाम दे रही है.’’

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