मेरी मित्र! परछाई
मेरी मित्र परछाई , क्या है तुम्हारी सच्चाई
छोड़ती कभी न साथ, न करती कभी बात।
चलती हमारे साथ, पर कभी न देती हमारा साथ।।
दिन हो चाहे रात , रहती हमारे पास।
करते अगर इससे बात , तो रहती सबसे नाराज़।।
रहती हमेशा चुपचाप, क्या है इसके मन में कोई बात ?
गिरते हम दोनों साथ , तो क्यों होता घाव मेरे ही पास?
क्या है इसका राज़, क्यों रहती वो मेरे ही पास।
मैं हूँ चाहे आप, समान व्यवहार रहता सबके साथ।।
मेरी मित्र परछाई, क्या यही है तुम्हारी सच्चाई।।
कविता का शीर्षक-
मेरी मित्र! परछाई ।
नाम – आरुषि खन्ना
संपर्क जानकारी – उत्तराखंड, देहरादून, कालसी
संक्षिप्त जानकारी – मैने अपनी कविता स्वयं लिखी है मैं राजकीय बालिका इंटर कॉलेज हरिपुर की कक्षा 12th की छात्रा हूँ। मुझे अपनी कविता लिखने का प्रोत्साहन मेरी हिंदी की अध्यापिका डॉ. पूर्णिमा शर्मा जी द्वारा मिला है।

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(बाल कविता) मेरी मित्र परछाई , क्या है तुम्हारी सच्चाई
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